Gunjan Kamal

लाइब्रेरी में जोड़ें

हीरे का हार


सुधीर जी ने जैसे ही कमरे के भीतर कदम रखा है अपनी पत्नी रेनू के हाथ में चिट्ठी देखकर चौंके बिना नहीं रह सकें क्योंकि आजकल दौड़ ही ऐसा है कि अभी के जमाने में जब से मोबाइल आ गया है तब से चिट्ठियां कौन लिखता है? सभी तो मोबाइल पर ही बात कर लेते हैं। चिट्ठियों का जमाना तो बीते दिनों की बात हो गई है। ऐसे में अपनी पत्नी रेनू के हाथों में चिट्ठी देखकर सुधीर जी से रहा नहीं गया और उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा "किसकी चिट्ठी पढ़कर रो रही हो?

"आपके भाई ने चिट्ठी लिखी है इसी के साथ कुछ भेजा भी है।" रेनू ने अपने पति द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहा।

"क्या भेजा है उस नालायक ने? माना कि बहुत बड़ा हो गया है पर एक बार अपने बड़े भाई से माफी मांग कर बात को खत्म कर सकता था लेकिन नहीं! स्वार्थी लोगों के पास अहम भी तो बहुत होता है। घर से तो एक रूपया तक नहीं मिला था फिर ना जाने कैसे इसने अपनी दुकान खोल ली और आज इतना बड़ा आदमी बन गया है कि लोग मुझे उसके नाम से पहचानने लगें है। बहुत बुरा लगता है लेकिन कर भी क्या सकते हैं? शुरुआत तो उसने चोरी - चमारी से ही की थी तभी तो दुकान खोलने के पैसे आए थे। दो नंबर के पैसे से धंधा शुरू किया था तभी तो तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता ही जा रहा है। वैसे लाओ तो देखूं क्या लिखा है उस नालायक ने?" सुधीर जी ने अपनी पत्नी रेनू के हाथ से चिट्ठी लें ली और चश्मे को ऊपर करते हुए पढ़ने लगें। 


चिट्ठी पढ़ने के बाद ऑंखों के कोरो में उतर आएं ऑंसुओं छुपाते हुए सुधीर जी ने अपनी पत्नी रेनू से कहा "तुमने भी कभी मुझे बताया नहीं किया तुमने अपने हीरो का हार उसे दिया था। उसे बेचकर ही  उसने अपनी दुकान खोली थी। हूबहू  आज उसने तुम्हें वैसा ही हार भिजवाया है लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि मैं आज तक उसे गलत समझता रहा मुझे तो यही लग रहा था कि उसने गलत तरीके से पैसे उठाएं और अपनी दुकान खोली। मैं बचपन से अपने भाई को जानता था लेकिन मैं उसे समझ नहीं पाया लेकिन तुमने भाभी होते हुए भी एक मां का फर्ज निभाया। मेरी मर्जी नहीं थी फिर भी तुमने अपने देवर समान बेटी की मदद की। चलो! आज हम उसके घर चलते हैं। इतने बरसों से जो मैं उसके बारे में गलत धारना अपने मन में बनाए रखे हुए था उसे भी तो अपने छोटे भाई के गले लग कर हमेशा के लिए खत्म करना है।"

चिट्ठी में लिखें घर के पत्ते पर जाकर सुधीर जी अपने भाई से मिले।  बरसों से सुधीर जी के दिल में बसी धारणा पल‌भर में ही भाई के गले लगते ही हमेशा के लिए समाप्त हो चुकी थी।

      #################

                                     धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💓💞💗
२५/०५/२०२२

# दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक बिषय पर लिखी गई


# लेखनी 

# लेखनी कहानी

# लेखनी कहानी सफर

   23
8 Comments

Milind salve

30-May-2022 07:21 PM

👌👏

Reply

Tariq Azeem Tanha

30-May-2022 07:05 PM

👌👌👏

Reply

Zafar Siddiqui

28-May-2022 11:15 PM

👏👌

Reply